उसने जो मेरी क्लास फेलो थी चुलबुली सी नटखट सी लड़की थी आ रहें थें शरीर पर अंतरिक उभार जिन्हें शब्दों में कहने में में रहूंगा शर्मशार अल्हड़ थी नटखट थी उफनती जवानी थी में भी तों खोज रहा था किसी से प्यार मोबाइल कि दुनिया नहीं थी चलता था पत्राचार गर्जती कड़कती वारिस में टूटे फ़ूटे घरो में वह भींगती हुईं आ गई थी गिला शिकवा माफ करके मिल कर सपने में रचा रहे थें प्यार नयी उमंग नयी जवानी दो देह ऐक मन से कर रहे थें प्यार लेकिन उस खंडहर कि दीवारों हमारी गर्म सांसें पसंद नहीं थी तभी तो गांव में हो गया था हाहाकार फिर क्या उसकी शादी तय की थी बारात आई थी दुल्हन बनकर ससुराल कड़कती ठंड में पहुंच गई थी सुहागरात रात में वह पति को नहीं कर पाईं थी सविका अब तो पता नहीं कहां है वो और मैं जीवन जी रहे हैं अवसाद काश जैसे हीर रांझा के प्रेम को उस समय समझा होता तब शायद हम आप नहीं जान पाते छोटी सी पंक्...
भादो माह में तो बारिस होती है लेकिन इस साल जयादा ही घूम गई थी आकाश को मेघों ने अपने काजों में कर लिया था काली काली घटाएं बल निहित हुई दूर पृथ्वी को छूता हुआ ऐसा नजारा हुआ कि तीन ही पृथ्वी और आकाश मिल गए हैं ऐसा लग रहा था कि जैसे ही किसी अल्हड़ मित्र बल की दुकान में देर से प्रेमी को रिझाने का काम कर घूमना पड़ा हो ऐसे ही मौसम में डेरे के शहर के करीब वह साडको नदी पर पानी की धारा से मिलने के लिए सघर्ष रात गया समुद्र से कुल मिलाकर यह प्रकृति का मिलन का मौसम था ऐसे मौसम में डॉक्टर करुणा सुपर कारिडोर से विजय नगर से बॉम्बे हॉस्पिटल से रिगन रोड पर अपनी लंबी सी कार की देव कर रही थी रुकी कुछ जगह रोड पर जयादा पानी था इसलिए कार चलाना में शामिल था और रैली में बैललर पुतले से यूँ टर्न लेकर वह किलनिक की सबसे दूर तक की फोटो खींची थी, जो कि स्टूडियो स्टार स्ट्रीट में रेती का स्टोकर वाली खड़ी थी, जो बहुत देर हो गई थी इसलिए उनहोंने अपनी कार दूर पार्क कर दी थी कार के अनदर छाता पता लेकिन वह घर पर था ही भूल गई थी कि वापस घर जाने का लेके उनहोंने अस्थमा के मरीज को दो बजे के बाद का समय दिया गया था इसलिए कलिनिक ज...