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Showing posts from September, 2025

अल्हड़ प्रेमिका

 उसने जो मेरी क्लास फेलो थी  चुलबुली सी नटखट सी लड़की थी  आ रहें थें शरीर पर अंतरिक उभार  जिन्हें शब्दों में कहने में  में रहूंगा शर्मशार  अल्हड़ थी नटखट थी  उफनती जवानी थी  में भी तों  खोज रहा था किसी से प्यार  मोबाइल कि दुनिया नहीं थी  चलता था पत्राचार  गर्जती कड़कती वारिस में  टूटे फ़ूटे घरो में  वह भींगती हुईं आ गई थी  गिला शिकवा  माफ करके  मिल कर सपने में  रचा रहे थें प्यार  नयी उमंग नयी जवानी  दो देह ऐक मन से कर रहे थें प्यार   लेकिन उस खंडहर कि दीवारों हमारी गर्म सांसें  पसंद नहीं थी  तभी तो गांव में  हो गया था हाहाकार  फिर क्या उसकी शादी तय की थी  बारात आई थी दुल्हन बनकर ससुराल  कड़कती ठंड में  पहुंच गई थी  सुहागरात रात में वह पति को  नहीं कर पाईं थी सविका अब तो पता नहीं  कहां है वो और मैं  जीवन जी रहे हैं  अवसाद  काश जैसे हीर रांझा  के प्रेम को उस समय समझा होता तब शायद हम आप नहीं जान पाते छोटी सी पंक्...

अल्हड़ प्रेमिका

 उसने जो मेरी क्लास फेलो थी  चुलबुली सी नटखट सी लड़की थी  आ रहें थें शरीर पर अंतरिक उभार  जिन्हें शब्दों में कहने में  में रहूंगा शर्मशार  अल्हड़ थी नटखट थी  उफनती जवानी थी  में भी तों  खोज रहा था किसी से प्यार  मोबाइल कि दुनिया नहीं थी  चलता था पत्राचार  गर्जती कड़कती वारिस में  टूटे फ़ूटे घरो में  वह भींगती हुईं आ गई थी  गिला शिकवा  माफ करके  मिल कर सपने में  रचा रहे थें प्यार  नयी उमंग नयी जवानी  दो देह ऐक मन से कर रहे थें प्यार   लेकिन उस खंडहर कि दीवारों हमारी गर्म सांसें  पसंद नहीं थी  तभी तो गांव में  हो गया था हाहाकार  फिर क्या उसकी शादी तय की थी  बारात आई थी दुल्हन बनकर ससुराल  कड़कती ठंड में  पहुंच गई थी  सुहागरात रात में वह पति को  नहीं कर पाईं थी सविका अब तो पता नहीं  कहां है वो और मैं  जीवन जी रहे हैं  अवसाद  काश जैसे हीर रांझा  के प्रेम को उस समय समझा होता तब शायद हम आप नहीं जान पाते छोटी सी पंक्...

खजूराहो के मन्दिर

  खजूराहो के मंदिर  देते हैं समाधि का संदेश  तृप्त तन मन  ही तो भोग से योग की और  अतृप्त तन भटकता है  चारों और  फिर परिणाम स्वरूप  पति पत्नी में होता है बिबाद  तलाकशुदा अदालत में पहुंचें  बॅक जाता है घर  बच्चे झेलते हैं अवसाद  इसलिए दाम्पत्य जीवन में  काम सुख का ज्ञान विज्ञान जरूरी है  बीच-बीच के अंतर में कोई दूरी नहीं होगी  स्वस्थ रहेंगे तन और मन  ज़िन्दगी का नतीजा ख़ुशी ख़ुशी  अंत समय में देह से प्राण  हँसी हँसी  मित्र चंद पंक्तियाँ के साथ सादर नमस्कार

डबल क्लिक

वह गांव में था  भोला भोला था नादान  लेकिन पोस्ट ने लिखा था  नौकरी की तलाश में  डिकले कांक्रीट में दिखाया गया था  के जंगल में  जो कहते हैं शहर  जहां इंसान के भेष में  कुछ घूमता है  आधुनिक शैली में  भटकती आत्माएँ  नज़रों को समझने में  नहीं पता कि ये नारी हैं  या फिर पुरुष  ख़ैर वह डकैत कांकृत की  सड़क पर भटक  कर स्टैंड था डोभाल लाल  बत्ती पर  कुछ सहमा सा  कुछ आशावान  बना खोज रही थी  दृश्यें  आसरा और रोजगार  वह देख रहा था चमचमाती हुई  कारों को जो अधिकतर था  बातानकूल  उनके अंदर कुछ प्रेत आत्माएँ हैं  अन्य थी स्त्री व पुरुष  :  दृश्य में थे  काले काले बैग  नंगी आँखों से देख रहे थे  अपने देह और धन की प्यास  खैर वह आखिरीरा भोला भाला  राममारा माया की  खोज में  था दुःख  तुल्यकालिक एक लम्बी सी  कार का सीसा नीचे हुआ था  जो घर में था  सी महोरातमा  बूढ़े पर लटके हुए थे खुले हुए बाल  और कपड़े ब...